रमेश भाई आँजना
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चमकता रहे ये सूरज तुम्हारे सर पर
मेरे दोस्तों
पीछड़ जाए ये तूफानी हवाए
तुम्हारी रफ़्तार के आगे
ओछे पड़ जाए ये समुद्रो के तूफ़ान
तुम्हारी बाहो के मुकाबले
नीची पड़ जाये ये पहाड़ो की चोटिया
तुम्हारी नीगाहो के नीचे
नीकालो खुद को अपने अंदर से
और ,,,,,
फेला दो अपनी महक अपनी खुशबु
सारी दुनीया में ,,,,
हँसी ,,,,,धुप ,,,,और हवा की तरह ,,,,,,
“आर.बी. आँजना “
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