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रमेश भाई आँजना
रमेश भाई आँजना
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बेईमानी की छत पे बैठा हु
वहा से ताजा नजारा देख रहा हु
बेईमानो के घर बनते देख रहा हु
इमानदारो के घर उजड़ते देख रहा हु
बेईमानी के भाव बढ़ते,खूब बिकते देख रहा हु
ईमानदारी केभाव घटते गोदामभरते देख रहा हु
बाबागिरी के अलाम कुछ यु देख रहा हु
की उन बेईमानो को जेल में बैठे देख रहा हु
रिस्तो की डोर कमजोर होते देख रहा हु
भाई भाई और बाप बेटे में दरारे देख रहा हु
कुछ को चरित्र के लिए मरते देख रहा हु
तो कुछको सूरत संवार करबाजीलुटते देख रहा हु
बुलंदीआ छूना तो मुझे भी बखूबी आता हे
पर दुसरो को गिराने का हुनर ,लोग कहा से लाते हे ,यही देख रहा हु
सभ्यताएवं संस्कृति का होता नाश देख रहा हु आधुिकता के नाम पे लोगो के नंगे होते देख रहा हु
आर बी आँजणा

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