रमेश भाई आँजना
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काफी समय के बाद आज कलम उठाई हे ,,,,
वक्त का तकाजा हे ,,,
कभी कभी वक्त हमें अपने में समेट लेता हे
पर फिर भी आज चार पंक्तिया उगल ही गई
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हमने जमाने का रुख देखा था
की ज़माना बदल गया
ज़माने का रुख ही बदल गया
जमाना भले बदल गया पर तुम क्यों बदल गए
हमने हरे गिरगिट देखे थे
ज़रा सा मुह क्या फेरा की
गिरगिट काले हो गए
गिरगिट को मात देकर तुम क्यों बदल गए
हमने तो कुछ बोला ही नही
कि……. तुम हिल गए
अच्छा होता पीछे बैठ कर
हमारे जज्बे देखते रहते
आप उन्हें देखने से पहले ही क्यों हिल गए
आर बी आँजणा
9413885566
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